हिमाचल प्रदेश का स्वाधीनता आंदोलन

हिमाचल में ‘दुम्ह’ राजाओ के शासन काल में बेगार, भूमिकर , भ्रष्ट अधिकारियों को हटाने हेतु किया जाता था| जनता द्वारा ऐसे असहयोग आंदोलन सन 1859 से लेकर 1930 तक रामपुर, बुशहर, सुकेत, नालागढ़, सिरमौर, चम्बा, बाघल, मंडी, कुल्लू तथा बिलासपुर आदि विभिन्न रियासतों में समय समय पर होते रहे |

अंग्रेजी शासन के दौरान आयोजित “दुम्ह” स्वाधीनता संग्राम का ही भाग था| जिसके फलस्वरूप अंग्रेज शासकों को जनता की अधिकांश मांगें माननी पड़ी |
हिमाचल के स्वाधीनता संग्राम में ‘धामी गोली काण्ड’ , ‘चम्बा विद्रोह’ ,’पछोता विद्रोह ‘, ‘मंडी तथा बिलासपुर विद्रोह ‘ ,’सुकेत आंदोलन आदि प्रमुख घटनाये है |

धामी गोली कांड
शिमला के निकट धामी एक छोटी सी रियासत थी, जिसके शासक राणा कहलाते थे | 1937 से यहाँ प्रेम प्रचारिणी सभा नाम से एक सामाजिक संस्था चल रही थी जिससे समय की मांग के अनुरूप 13 जुलाई, 1939 को प्रजामण्डल का रूप धारण कर लिया |
धामी के प्रजामण्डल ने जिसका नेतृत्व श्री सीता राम जी कर रहे थे, राणा दलीप सिंह के सम्मुख तीन मांगें रखी:
१. बेगार बंद हो |
२. लगान काम हो |
३. धामी प्रजामण्डल को स्वीकृति मिले |
राणा ने तीनों मांगें अस्वीकृत कर दी | अब असंतुष्ट जन-प्रतिनिधि अपनी मांगों को राणा के सम्मुख रखने के लिए जनता सहित धामी पहुंचे | राणा ने घणाहट्टी में ही भागमल सौंठा को जो जुब्बल से रियासती प्रजामण्डल के प्रतिनिधि के रूप में आये थे, बंदी बना लिया |
धामी में बिना चेतावनी दिए गोली चलाने से दो व्यक्तिओं श्री उमादत्त तथा श्री दुर्गा मर गए और कुछ घायल हो गए |
॰सिरमौर संघठन- सिरमौर रियासत में 1920 में एक गुप्त संगठन ने पंजाब के क्रांतिकारिओं से प्रेरणा लेकर क्रांति का प्रयास किया | इस संगठन में एक नेता चौधरी शेरजंग “ट्रैन डकैती ” में संलिप्त थे जिन्हे अंग्रेज सरकार द्वारा कारावास दिया गया था |
॰ सिरमौर में प्रजामण्डल की स्थापना 1939 में हुई| चौधरी शेरजंग की मुलतान जेल से रिहाई के बाद इस प्रजामण्डल में सर्वश्री शेरजंग, शिवानंद रमोल, देवेंद्र सिंह, नाहर सिंह, नागेंद्र सिंह , हरिश्चंद्र आदि थे |
॰ राजा को जान से मारने के एक मुकदमे में देवेंद्र सिंह, नाहर सिंह , हरीशचंद्र, जगबंध सिंह को फांसी दे दी गयी |
॰ पझौता विद्रोह – सिरमौर की तहसील पच्छाद का लगभग आधा भाग “पझौता “कहलाता है | पझौता का आंदोलन अक्टूबर, 1942 में आरम्भ हुआ |
॰ इस समय दूसरा विश्वयुद्ध जोरों पर था | उधर बंगाल में अकाल पड़ा हुआ था | अन्न की कमी अनुभव हो रही थी | इसलिए रियासती सरकार ने किसानों पर रियासत से बाहर अनाज भेजने पर रोक लगा दी |
॰ दूसरा यह आदेश कर दिया की किसान लोग अपने पास थोड़ा अन्न रखें और शेष अन्न सरकारी कोआपरेटिव सोसाइतियों में बेच दें | इन सब बातों से तंग आकर “पझौता किसान सभा ” का गठन किया गया |

पझौता किसान आन्दोलन के लिए सभी जाति, वर्ग एवं धर्मों के लोगों को संगठित करने पर बल दिया गया|
इसके प्रधान लक्ष्मी सिंह गॉव कोटला तथा सचिव वैध सूरत सिंह कटोगड़ा चुने गए |
इसके अतिरिक्त टपरोली गांव के मियाँ गुलाब सिंह और उतर सिंह जड़ोल के चूँ चूँ मियां, पैणकुफ़र के धामला के मदन सिंह बगोट के जालम सिंह नेरी के काली राम शादगी आदि | उन्होंने राजा राजेंद्र प्रकाश को पत्र द्वारा अनुरोध किया की वह स्वयं लोगों की स्थिति जानने के लिए इलाके का दौरा करें तथा नौकरशाही द्वारा लोगों में दुर्वयवहार, रिश्वतखोरी एवं झूठे मुकदमे बना परेशान करने तथा बेगार बंद करने की मांग की |
तत्कालीन सिरमौर नरेश राजेंद्र प्रकाश प्रभावी कर्मचारिओं की चापलूसी पर आश्रित था और उन्होंने राजा को अपने लोगो से मिलने नहीं दिया |इस प्रकार समूचा पझौता क्षेत्र सैनिक शासन के अधीन हो गया | दो मास तक लोग बराबर मार्शल लॉ के अधीन भी आंदोलन करते रहे | दो माह के पश्चात् सैनिक शासन और गोलीकांड के बाद सेना और पुलिस ने आंदोलनकारीयो के मुख्य व्यक्तिओं को गिरफ्तार कर लिया |
कुछ लोगो ने भाग कर रियासत जुब्बल में शरण ली | कारावास से कुछ लोग थोड़ी थोड़ी देर बाद रिहा होते रहे क्योकि रियासत की स्थिति भी कमजोर होती जा रही थी | वैध सूरत सिंह , बस्ती राम पहाड़ी और चेत सिंह वर्मा ने स्वाधीनता दिवस भी जेल की कोठरी में मनाया | इनकी रिहाई 1948 में संभव हो सकी |

ठिओग, मघान आंदोलन – ठिओग तथा मघान रियासतों में 1926 -28 के बीच विद्रोह की ज्वाला भड़की | विद्रोह को कुचलने के लिए बलोच व जेहलमी पुलिस बुलाई गयी जिन्हे आतंक फ़ैलाने के लिए घर घर भेजा जाता था |
॰ ठियोग रियासत के मियां खड़क सिंह ने जनता के साथ मिलकर आंदोलन छेड़ा | इनकी पत्नी देववती भी इसमें शामिल हुई| मघान रियासत में भी इस तरह के आंदोलन चलते रहे |
॰ इनके साथ कुम्हार सेन , खनेटी, घुण्ड आदि छोटी छोटी रियासतों में भी विद्रोह होता रहा | जिससे जनता में साहस उत्पन्न हुआ |
॰ 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही प्रजामण्डल के ठिओग रियासत पर कब्ज़ा कर लिया और एक स्वतंत्र सरकार की स्थापना की |
॰ उस समय जब देश की रियासतें स्वतंत्र भारत में मिलने के नाम तक नहीं ले रही थी, ठियोग को स्वतंत्र हिमाचल में मिलाना एक उल्लेखनीय घटना थी | किन्तु पांच छः मास बाद ही राणा ने सशस्त्र धावा बोल कर रिकॉर्ड तथा नकदी लूट ली |
॰ डॉ. परमार द्वारा दिल्ली संपर्क करने पर सरदार पटेल के आदेश से पुलिस ठियोग भेजी गयी और राणा को गिरफ्तार कर रियासत से जलावतन कर दिया गया |
॰ सोलन कंस्टीच्यूट असेम्ब्ली – शिमला हिल्स स्टेट्स के शासको ने बघाट नरेश दुर्गा सिंह की अध्यक्षता में एक कंस्टीच्यूट मेकिंग बॉडी बनानी चाही जिसमे समस्त रियासतों को आमंत्रित किया |
॰ इसमें सर्वश्री देवीदास मुसाफिर, सूरतराय प्रकाश, देवी राम केवला, ऐस डी. वर्मा, भास्करानंद, हीर सिघ पाल, भाग मल मौहता आदि ने अपने अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया |
॰ वास्तव में शासक वर्ग ऐसा विधान बनाना चाहते थे जिससे स्वतंत्र भारत में भी इनकी प्रभुसत्ता कायम रहे | असेम्ब्ली के प्रबंधक महावीर सिंह ने पंडित पदम् देव तथा डॉ. परमार को असेम्ब्ली में घुसने नहीं दिया |

॰ जो प्रजामण्डली भीतर थे उनसे भी अच्छा व्यवहार नहीं किया गया | अतः पंडित पदमदेव तथा तथा डॉ. परमार ने दिल्ली में राष्ट्रिय नेताओ से वार्तालाप किया और परिणामस्वरूप इन नरेशों को विलीनकरण के लिए दिल्ली बुलाने का विचार हुआ | अंततः समस्त नरेशों ने विलीनीकरण पर हस्ताक्षर कर दिए |
चम्बा विद्रोह – चम्बा रियासत में सर्वप्रथम सन 1896 में विद्रोह का विगुल बजा | बेगार कर तथा लगान की अधिकता के कारण भटियात की जनता ने बेगार तथा लगान देने से मन कर दिया |
॰ सरकार ने लाहौर के कमिश्नर द्वारा मामले की छानबीन कराई| विद्रोही व्यक्तियों को कठोर सजाये दी गयी जिससे वे दोबारा सिरन उठा सकें |
॰ इस पर राजा को प्रजा से घनिस्ट सम्बन्ध स्थापित करने हेतु एक सलाहकार कौंसिल बनाने को कहा गया |
॰ सन 1932 में चम्बा राज्य निष्कासित व्यक्तियों ने चम्बा सुरक्षा लीग की स्थापना की |
॰ 1936 , में चम्बा के मकानों में लगी आग की सहायतार्थ चम्बा सेवक संघ का गठन किया गया |

॰ इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया | किन्तु चम्बा में प्रतिबन्ध लगने पर संघ ने अपनी गतिविधियां डलहौजी में केंद्रित कर दी |
॰ उर्दू तथा हिंदी के समाचार- पत्रों में चम्बा की दुर्दशा पर बहुत से लेख लिखे गए जिससे देश भर का ध्यान इस पहाड़ी रियासत की और गया | इन पत्रों में केसरी, इंकलाब , नेशनल कांग्रेस , ग़दर, पैगामे सुलह , एहसान आदि शामिल है |

कुनिहार में संघर्ष – कुनिहार में सर्वप्रथम 1920 में राजा के विरुद्ध आवाज उठाई गयी | इन लोगों को कारावास में डालदिया गया | इन लोगो ने 1928 में जेल से छूटने पर अपना कार्यक्षेत्र शिमला बदल दिया |
कुनिहार प्रजामण्डल के गठन शिमला में ही 1939 में हुआ | जिसमे बाबू कांशी राम, गौरी शंकर आदि नेता थे |
राणा द्वारा १३ जून, 1939 को इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया, 8 जुलाई, 1939 को राणा के समक्ष कुछ मांगें रखी गयी –
1 . बंदी कार्यकर्तांओं को छोड़ दिया जाये |
2 . लगान में 25 % की कमी की जाए |
3 . प्रजा मंडल से प्रतिबन्ध हटा दिया जाये |
4 . एक शासक सुधार कमेटी नियुक्त की जाये |
॰ राणा हरदेव सिंह ने मांगें स्वीकार कर ली तथा 9 जुलाई , 1939 को प्रजामण्डल के जलसे में सभापति बनना भी स्वीकार क्र लिया | इस प्रकार कुनिहार प्रजामण्डल को वैधानिक करार दिया गया | इसमें राजा की ओर से तथा साधारण जनता से दोनों ही प्रकार के सदस्य रखे गए | यह प्रजातंत्र पर प्रथम विजय थी |

बिलासपुर के संघर्ष – 1930 में भादरपुर परगना के किसानों ने बंदोबस्त स्टाफ को जलाने की लकड़ी, मुफ्त देनी बंद कर दी| जनता ‘नजराना’ मछली पकड़ने के लाइसेंस तथा अन्य करों के कारण पहले ही परेशान थी |
॰ राज्य के कर्मचारियों के जनता के प्रति व्यवहार अत्यंत घटिया था | इन सब कारणों से लोगों में अशांति फ़ैल गयी | राज्य की छोटी सी पुलिस को स्थिति पर काबू पाना कठिन हो गया अतः पंजाब से सशस्त्र पुलिस मंगवाई गयी |
॰ पुलिस ने कुछ लोगो को पकड़ा और उन्हें बिलासपुर ले आयी | इस दमनकारी निति के बावजूद एक गुप्त संगठन कार्य करता रहा | 9 जनवरी , 1933 को राजा आनंद चंद्र के आने पर दोहरी निति चलाई गयी |

॰ आन्दोलनकारिओं ने भी धार्मिक, सामजिक संगठनों जैसे “सनातन धर्म सभा ” की आड़ में राजनैतिक गतिविधियां ज़ारी रखी |
॰ राज्य के कुछ युवाओं (सर्वश्री दौलत राम संख्यान, नरोत्तम दत्त शास्त्री, देवी राम उपाध्याय)ने चोरी चोरी 1945 के उदयपुर के अदिवेशन में भाग लिया | वहां से वापसी पर उन्होंने बिलासपुर प्रजामण्डल की नीव रखी |
॰ प्रजामण्डल ने राजा को ज्ञापन दिया जिसके अनुसार मांगें अस्वीकार होने पर 21 दिसम्बर, 1946 के बाद सत्याग्रह छेद दिया गया | किन्तु इस सत्याग्रह को बुरी तरह दबाया गया |
॰ कॉन्फ्रेंस ने राजा से अनुरोध किया की बदलते हालात में जनता की सुनवाई होनी चाहिए | शिमला में भी बिलासपुर की सहानभूति में जलसे जुलूस किये गए |
॰ रामपुर बुशहर में संघर्ष – रामपुर बुशहर में अंग्रेजों द्वारा वनों के लाभ उठाने तथा अन्य भागों को लेकर सन 1906 में दुम्ह हो चूका था | जो असहयोग आंदोलन के ही एक रूप था | इस क्षेत्र में सामाजिक कुरूतियों के विरुद्ध एक आर्य समाज प्रचारक के रूप में पंडित पदमदेव ने आवाज उठाई |
॰ हरिजन दुर्व्यवहार, बाल विवाह , रीती की कुरीति के विरुद्ध के विरुधझ उन्होने कार्य किया जिससे उच्च जाति के लोग इन्हे पसंद नहीं करते थे | कोटगढ़ में श्री सत्यनन्द स्टौक्स ने बेगार के विरुद्ध संघर्ष छेड़ा हुआ था | हिमाचल रियासती प्रजामण्डल की स्थापना दिसंबर, 1938 में हुई थी |

॰ चिरंजी लाल वर्मा, भागमल सौहटा, पंडित पदम् देव, गोविन्द सिंह, ज्ञान चन्द टूटू, सूरत राम प्रकाश, देवी दास मुसाफिर, भास्कर चन्द, मंशा राम चौहान, हीरा सिंह पाल, सीता राम आदि इसके संस्थापक सदस्य थे | इस प्रजामण्डल ने पहाड़ी रियासतों में राजनैतिक सामाजिक सुधारआरम्भ किया |
॰ शिमला की रियासतों के कई भागों में इसके सम्मेलन किये गए | इस जागृतिमें पंडित पदमदेव सचिव प्रजामण्डल शिमला का अधिक हाथ था |प्रजामण्डल पर कई रियासतों – ठिओग, बलसन, भज्जी, बेजा, क्योंथल पर प्रतिबंद लगाना आरम्भ क्र दिया गया |
॰ सरकार भी प्रजामण्डल के प्रति आशंकित हो गयी थी | उन्होंने निर्देश दिए की वे ऐसे आंदोलनो से सावधान रहें | इस बीच दूसरे संगठन जैसे सुधार सम्मेलन सेवक मंडल दिल्ली , बुशहर प्रेम सभा भी बन चुके थे | राज्य के कुछ कर्मचारियों ने भी बुशहर राज्य कर्मचारी संघ बना डाला |
॰ राजा बुशहर ने 18 अप्रैल ,1947 को जान प्रतिनिधि असेंबली बनाना मन लिया | परन्तु उन्ही दिनों उनकी आकस्मित मृत्यु हो गयी | राजनैतिक एजेंट ने 18 मई, 1947 को एक आंतरिक कौंसिल मनोनीत कर दी | इसे बनाने में प्रजामण्डल की सलाह नहीं ली गयी थी अतः प्रजामण्डल ने आंदोलन जारी रखा |
॰ मंडी जागरण मंडी का गुप्त आक्रोश सन 1909 में सामने आ गया | जनता उपाध्याय जीवानंद, वजीर के प्रशासन से असंतुष्ट थी | कम उपज और अधिक लगान एक रुपये के चार सेर के बाजार भाव के स्थान पर एक रूपये के ५सेर की बिक्री , बेगार आदि के कारण जनता में रोष फैलता गया |

॰ सुकेत आंदोलन मंडी की भांति सुकेत भी 1914 के आसपास “ग़दर पार्टी” की गतिविधियों का केंद्र बना | सन 1924 में लगान कर तथा बेगार से तंग आकर जनता ने विद्रोह कर दिया और राजा को देहरादून भागना पड़ा |
॰ राज्य में प्रजामण्डल का गठन 1945 में ही हुआ | मियां रत्न सिंह इसके प्रधान थे | प्रजामण्डल ने अपनी मांगों के लिए आंदोलन आरम्भ कर दिया |
॰ अगस्त, 1947 तक प्रजामण्डल सत्याग्रह के लिए तैयार हो गया | राजा ने आंदोलन को दबाने का प्रयास किया | अंत में राज्य सभा के गठन से आंदोलनकारियों को जिताना चाहा | सुकेत प्रजामण्डल ने चुनाव में भाग नहीं लिया |
॰ फरवरी, १९४८ में हिमाचल हिल्स स्टेटस रीज़नल कौंसिल द्वारा अंतरिम सरकार का गठन किया गया | जिसके प्रधान पंडित देव नन्द रमौल थे |
॰ इस अंतरिम सरकार के नेता फरवरी में सुन्नी, भज्जी में एकत्रित हुए तथा आधुनिक प्रजातंत्र के अधीन के प्रांत के गठन के लिए रणनीति निर्धारित की |
॰ इसके लिए सुकेत को प्रथम लक्ष्य बनाया गया | पदम् देव के नेतृत्व में फरवरी, 1948 को सत्याग्रहियों द्वारा सुकेत पर अहिंसात्मक धावा बोल दिया |
॰ काँगड़ा, कुल्लू, लाहौल स्पीति – सन 1846 के एंग्लो – सिख युद्ध के बाद काँगड़ा, कुल्लू तथा लाहौल स्पीति अंग्रेजों को प्राप्त हुए थे | ये एक जिला काँगड़ा के अधीन हो गया जिसका मुख्यालय धर्मशाला बना |
॰ नूरपुर के राम सिंह पठानिया जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने आवाज़ उठाई किन्तु ब्रिटिश सरकार ने उसे दबा दिया | अंग्रेजों की कुदृष्टि नूरपुर पर थी | इसे हथियाने के लिए अंग्रेजों ने नूरपुर पर धावा बोल दिया |

॰ राम सिंह पठानिया वीरता से लड़ा किन्तु अंत में उसने वीरगति प्राप्त की |
॰ काँगड़ा में मार्शल रेस अधिक थी | अतः ब्रिटिश सरकार इसे राष्ट्रीय आंदोलन से दूर रखने का भरसक यत्न करती रही |
॰ गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के संपर्क में बहुत से काँगड़ा वासी आये, क्योकि ये लोग लाहौर आदि नगरों में नौकरी के सिलसिले में जाते रहते थे | इनमे से बहुत से लोगो ने पढाई और नौकरी छोड़ गाँधी जी का साथ दिया तथा काँगड़ा आकर गाँधी जी के सन्देश को गांव गांव में फैलाया |
॰ सन 1927 की सुजानपुर के ताले में हुई कॉन्फ्रेंस में कामरेड हजारा सिंह, बाबा काशी राम ने विशाल जन- समुदाय को सम्बोधित किया | बलोची पुलिस ने लोगो को बुरी तरह पीटा, गाँधी टोपियॉँ छीन ली गयी | इस घटना के बावजूद 1930 तक राष्ट्रीय आंदोलन ने जड़े पकड़ ली |

॰ बाबा काशी राम जिन्हे पंडित जवाहर लाल नेहरू ने गढ़दीवाला सम्मेलन में पहाड़ी गाँधी के नाम से विभूषित किया | उन्होंने अपने सुरीले कंठ से कवितायें गा गा कर जनता में यह आंदोलन फैलाया | ये लाल हरदयाल के संपर्क में आये और जेल यात्रा की |

॰ठाकुर हजारासिंह ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने 1896 में अलग पहाड़ी राज्य का नारा लगाया था | हमीरपुर के क्रन्तिकारी श्री यशपाल उनके साथी इंद्रपाल के अतिरिक्त लाला नगाहिया मल, चतर सिंह आदि ने भी स्वाधीनता आंदोलन जारी रखा |
॰ बार बार दबाये जाने के बाद भी काँगड़ा में राष्ट्रिय आंदोलन जारी रहा और 1935 में विधान सभाओं में गठन के समय तेजी से आगे बढ़ा | चुनाव अभियान जिले के हर भाग में चलाया गया | काँगड़ा में चारों सीटें जीत ली गयी |
॰ द्व्तीय विश्व युद्ध के समय कांग्रेस मंत्रिमंडल से त्याग- पत्र तथा आजाद हिन्द फौज में गठन के समय काँगड़ा का योगदान भुलाया नहीं जा सकता |
॰तत्कालीन काँगड़ा ( काँगड़ा, हमीरपुर, ऊना, कुल्लू समेत) ने आजाद हिन्द फ़ौज को सैंकड़ों सैनिक दिए | आजाद हिन्द फ़ौज में बहादुरी के लिए मेजर मेहरदास को ‘सरदार- ए-जंग’ तथा कैप्टन बक्शी प्रताप सिंह को ‘तमगा- ए- शत्रुनाश’ से सम्मानित किया गया |
॰ इसके अतिरिक्त श्री हरी सिंह (सरकाघाट) को ‘ शेरे हिन्द ‘ तथा लेफ्टिनेंट अमर चंद (हमीरपुर) को बहादुर का तमगा मिला |
॰ भारत छोड़ो आंदोलन के समय काँगड़ा में विशेष उत्साह की लहर थी | लाहौर के पंडित अमरनाथ शर्मा जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने पालमपुर जाकर अपना कार्य आरम्भ किया |
॰ इन्होने कई शिक्षा संस्थानों व औषधालय खोले | इन गतिविधियों में इनकी सहायता श्री कन्हैया लाल बुलेट ने की जिनके पास पंडित जवाहर लाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गाँधी, राजकुमारी अमृतकौर, श्री जगजीवन राम तथा पंजाब के भी कई नेता ठहर चुके थे |
॰ ऊना में सन 1905 में बाबा लक्ष्मण दास के सहपाठी अजित सिंह ( सरदार भगत सिंह के चाचा ) उनके घर पधारे और उन्हें देश सेवा के लिए प्रेरित किया | फलतः बाबा जी ने 1905 में पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और लाला लाजपतराय तथा हंसराज के परामर्श से परिवार सहित समाज सेवा में जुट गए |
॰ ऊना में सर्वश्री बाबा लक्ष्मण दास, बक्शी सत्यप्रकाश बागी, सत्यमित्र पंडित, हरिराम तीर्थराम आदि नेताओं ने स्वाधीनता संग्राम ज़ारी रखा |

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